नीमकाथाना। शहर में दो दिनों से लगातार हो रही बारिश से बड़ी संख्या में केंचुए जमीन से बाहर निकल आएं हैं। कच्चे रास्तों और खेतों में इनकी संख्या ज्यादा देखी जा रही है।
सहायक कृषि अधिकारी बलवीर सिंह ने बताया कि केंचुए जमीन की सबसे ऊपरी परत के नीचे पाए जाते हैं। बारिश के कारण यह परत हट जाती है। जिससे ये बाहर आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि मानसून का मौसम ऐसे जंतुओं के लिए प्रतिकूल होता है। बारिश के बाद केंचुए हाइबरनेशन में चले जाते हैं।
केंचुआ पालन पर सब्सिडी
सहायक कृषि अधिकारी सिंह ने बताया कि कृषि विभाग द्वारा वर्मी कल्चर अर्थात केंचुआ पालन के लिए सब्सिडी दी जाती है। गड्ढों (बेड) के आकार के अनुसार सब्सिडी दी जाती है। 30×22 आकार के गड्ढे पर 50,000 रुपए व 7×3 आकार के गड्ढे पर 5,000 रुपए सब्सिडी किसानों को दी जाती है।
केंचुआ खाद प्रक्रिया
सिंह ने बताया कि केंचुए के द्वारा खाद बनाने की प्रक्रिया में सर्वप्रथम एक गड्ढा तैयार किया जाता है। जिसमें 7 से 8 किलो की मात्रा में कच्चा गोबर डाला जाता है। केंचुओं को पूर्व में संचालित इकाइयों से लाया जाता है। बाद में गोबर से भरे बड़े गड्ढों में डाल दिया जाता है। ये केंचुए कच्चे गोबर को खाने की प्रक्रिया के साथ गड्ढे के निचले तल तक चले जाते हैं। जैसे-जैसे केंचुए नीचे की तरफ जाते है। खाद तैयार होती जाती है। इस प्रक्रिया को वर्मी कंपोस्ट का कहा जाता है।
किसान मित्र केंचुआ
केंचुए का वैज्ञानिक नाम लुम्ब्रिसिना है। जैविक खेती का केंचुआ अभिन्न अंग है। यह खेतों की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ भूमि का सुधार भी करता है। सहायक कृषि अधिकारी ने बताया कि उद्यान कृषि वाले कृषकों को भी केंचुए से बनी खाद का प्रयोग करना चाहिए। जिससे वे अपनी उपजी कृषि की पैदावार बढ़ा सके।