राजस्थान के उज्जवल पन्नों में अंकित पत्रकारिता, राजनीतिक क्षेत्र और समाज में अपना एक अलग मुकाम स्थापित किए हुए जो तीनों में बिना किसी टकराव के अपनी छवि स्थापित करने वाले ऐसे अद्भुत व्यक्ति जाने-माने पत्रकार सीताराम झालानी।
इनका नाम पत्रकारिता जगत, राजनीतिक, प्रशासनिक आदि क्षेत्रों में अनजाना नहीं है। इनका मस्तिष्क आज भी किसी प्रतिभावान युवा को मात देता है, कम्प्यूटर की भांति हर बातों का जवाब कुछ मिनटों में हाजिर हो जाता है। राज्य के किसी भी घटनाक्रम या अन्य किसी भी तरह की जानकारी की बात करें तो तुरन्त जवाब मिलता है। साल-तिथि के साथ ऐसा वर्णन करते हैं, जैसे उनके मानस-पटल पर तत्कालीन चलचित्र चल रहा हो। मंगलवार को एचजेयू के छात्रों से शिष्टाचार करते हुए उन्होंने पत्रकारिता क्षेत्र में काम करने का बहुत ही बेहतरीन तरीका बताया।
उन्होंने बताया कि बालपन में गाँव के जागीरदारों द्वारा जनता पर ढाए जाने वाले जुल्मों सेठ-साहूकारों द्वारा गरीब किसानों के शोषण और ग्रामीण जनजीवन की अंतहीन कष्टगाथाओं से भाऊक होकर कलम को हथियार बनाने का संकल्प लिया।
झालानी ने छात्र जीवन में ही पत्रकारिता की ओर विशेष झुकाव होने के कारण दैनिक 'लोकवाणी' एवं 'राष्ट्रदूत' तथा साप्ताहिक 'अमर ज्योति' व 'प्रजा सेवक' के बगरू संवाददाता रहते हुए सन् 1951-52 में हस्तलिखित पत्रिका "बगरू संदेश" निकाली। ये सन् 1954 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुखपत्र "कांग्रेस सन्देश" साप्ताहिक के प्रधान सम्पादक तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के साथ सहायक सम्पादक रहे।
जयपुर में शास्त्रीनगर स्थित इनके निवास औंकारश्री में ढेर सारी अखबार की कतरनों की संदर्भ सामग्री की करीब हजारों फाइलें करीने से रखी हुई है। झालानी विभिन्न अखबारों से घटनाओं, लेखों और समाचारों की कतरनें काटने तथा विषयवार फाइलें बनाना इनका आश्चर्यचकित शौक है, जो 1954 से आज तक उनका यह शौक बदस्तूर जारी है।
इन फाइलों में राजस्थान के देवालय, किले, नदियां, पहाड़, अभ्यारण्य, राजघराने, राजनेता, स्वतंत्रता सेनानी, धर्म, त्यौहार, दुर्ग, मेले, संगीत, नृत्य, पुरातत्व, खनिज आदि ढ़ेर सारे विषयों की फाइलें मौजूद है। राजस्थान से सम्बन्धित जितने भी विषयों की हम कल्पना कर सकते हैं उनकी संदर्भित फाइलें इनके पास मौजूद है। किसी भी विषय के प्रोफेसर के पास तो केवल सम्बन्धित विषय की ही फाइलें मिल सकती हैं, लेकिन इनके पास तमाम विषयों की तमाम फाइलें हैं। दरअसल झालानी अपने दशकों की पत्रकारिता में अर्जित ज्ञान और निरन्तर संखबरों की कतरनों का संग्रहण केन्द्र है। इससे साफ जाहिर होता है कि झालानी एक चलते, फिरते, बोलते संग्रहालय है।